मन्द समीर यूँ स्थिर हो गया, जैसे हिरणी उनके आगे बढ़ने के रास्ते में साक्षात आ गिरी हो, जिसे लांघकर जाना उसके बस में नहीं।
6.
आफिस माचिस संग ले कुण्डली दई बनाय, खुसरो और कबीर पे मन्द समीर बहाय, मन्द समीर बहाय कि पढ़नेवालो होयो खुश, बुरा नहीं मानेंगे इसका कौनू मिस्टर बुश, गूँज रही यह बात चलेगी अब ना साज़िस, रोक नहीं पाएगा कविताई को आफिस।
7.
आफिस माचिस संग ले कुण्डली दई बनाय, खुसरो और कबीर पे मन्द समीर बहाय, मन्द समीर बहाय कि पढ़नेवालो होयो खुश, बुरा नहीं मानेंगे इसका कौनू मिस्टर बुश, गूँज रही यह बात चलेगी अब ना साज़िस, रोक नहीं पाएगा कविताई को आफिस।
8.
जब मन्द समीर अपने संगीत-भरे पंखों को फैलाये इसके ऊपर उड़ता है, तो इस सागर की सतह पर लोल लहरियाँ उठ मधुर गुंजन करती हैं और जब तूफान अपने भयावह पंखों को फडफ़ड़ाता इसके ऊपर छा जाता है, तो वही लोल लहरियाँ विकराल लहरें बनकर क्रन्दन कर उठती हैं, सागर का किनारा थर्रा उठता है!